प्रियंका की कांग्रेस में औपचारिक एंट्री से क्या उत्तर प्रदेश की रणनीति पर पढ़ेगा असर ?
प्रियंका के आने से क्यों खुश हैं कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता ?
प्रियंका गांधी कांग्रेस का एक ऐसा चेहरा जिसे कभी भी सामने नही लाया गया हमेशा परदे के पिछे ही रखा गया इसके पिछे क्या कारण था इसे कभी भी सार्वजनिक नहीं किया गया लेकिन ये बात कभी छुप भी नही पायी है,राजनीतिक सलहाकारों का कहना है कि शायद इसका एक बड़ा कारण राहुल गांधी हैं। कहते हैं यदि राहुल और प्रियंका को एक साथ राजनीति में लाया जाता तो शायद राहुल गांधी का राजनीति अस्तित्व खतरे में पढ़ जाता। प्रियंका ना सिर्फ चहरे से बलकि राजनीतिक सामर्थ से भी बिलकुल अपनी दादी और भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधीकी तरह हैं। जिस तरह से प्रियंका अमेठी में अपने भाई राहुल गांधी और रायबरेली में अपनी मां सोनिया गांधी के लिए प्रचार करती रहीं हैं वह बिलकुल आपनी दादी की तरह ही लगती हैं, कभी भी बिना सोचे समझे लोगों और कार्यकर्ताओं के बीच चले जाना जैसा की उनकी दादी किया करतीं थी। प्रियंका का इस तरह से लोगों और कार्यकर्ताओं से मिलना और उनकी समस्याओं को सुनना कहीं ना कहीं कांग्रेस और प्रियंका दोनों के लिए अच्छा साबित होता गया। ऐसा करने से कांग्रेस कभी भी अमेठी और रायबरेली में कमजोर नहीं पड़ी साथ ही लोगों के दिलों में प्रियंका के लिए जगह बढ़ती चली गयी।इसी संदर्भ में रायबरेली के जिला अध्यक्ष वीके शुक्ल, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह और कांग्रेस के कर्याकर्ता बार-बार प्रियंका गांधी को सक्रिय राजनीति में लाने की बात कहते रहते थे,लेकिन ऐसा होता हुआ नहीं दिख रहा था। पत्रकार भी समय-समय पर प्रियंका से इस बारे में पूछते रहते थे पर वह परिवार और बच्चों का बहाना करके सवालों को टाल दिया करतीं थी। प्रियंका का प्रचार करने का तरीका बाकी कांग्रेस के नेताओं से अलग है वह जमीनीस्तर पर जाकर प्रचार करतीं है जो लोगों को काफी पसंद आता है. ऐसा करने से वह जमीनी स्तर पर लोगों के करीब आ जाती हैंजो किसी भी पार्टी और नेता के लिए फायदे मंद साबित होता है। कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में सिर्फ नेता नही बल्की ऐसा चेहरा चाहिए था जिसे नेता,कार्यकर्ताओं के साथ-साथ जनता भी स्वीकार कर ले और शायद कांगेस के पास प्रियंका से बेहतर कोई और विक्लप नहीं था जो इस मापदंड को पूरा कर सके।
प्रियंका क्यों है कांग्रेस की जरुरत ?
प्रियंका को कांग्रेस में अचानक औपचारिक पद मिलने का कारण केवल उनकी काबीलियत ही नहीं है बलकि कांग्रेस की जरुरत भी है, क्योंकि पिछले लोकसभा चुनाव हों या विधानसभा कांग्रेस का प्रर्दशन लगातार उत्तर-प्रदेश में गिरा है। 2009 लोकसभा चुनाव की बात करें तो कांग्रेस को 21 सीट पर उत्तर प्रदेश में जीत हासिल हुई थी जिसमें 13 सीट कांग्रेस ने पूर्वांचल क्षेत्रों से जीती थी जहां का अब प्रियंका को प्रभारी बनाया गया है यानी ‘पूर्वी उत्तर प्रदेश’। लेकिन जब हम 2014 के लोकसभा चुनाव की बात करते है तो कांग्रेस जो 2009 में सबसे बड़ी पार्टी उत्तर प्रदेश में थी वो 2014 में महज 2 सीटों पर ही निपट जाती है। लोकसभा के परिणाम को देखते हुए पार्टी ने 2017 विधानसभा चुनाव में गठबंधन पर भरोसा दिखाया और सपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा लेकिन यहां कांग्रेस को फायदे के बजाए उल्टा और सुकसान छेलना पड़ा, पार्टी 105 सीटों में से महज 7 सीटे ही जीत पाई। राजनीतिक जानकार बतातें हैं की कांग्रेस कि इतनी बुरी स्थिती का कारण उसकी गोल-मोल राणनीतियां थी और बचा-कुचा नुकसान सपा के साथ गठबधंन ने कर दिया था जिससे कार्यकर्ताओं में काफी निराशा थी, क्योंकि कांग्रेस के कार्यकर्ता इस गठंबधन से खुश नहीं थे। इस गठबंधन ने साफ कर दिया था कि कांग्रेस एक खराब दौर में है. उत्तर प्रदेश में अब तक कांग्रेस की जिम्मेदारी राजब्बर और गुलामनबी आजाद पर थी बीच-बीच में राहुल गांधी भी उत्तर प्रदेश के जिलों का दौरा करते रहते थे पर एक इलजाम जो इन नेताओं पर लगता रहता था वह यह था कि यह कभी-कभी ही किसी जिले में दौरों के लिए आते-जाते थे वरना उत्तर प्रदेश को यह दिल्ली से ही चलाते थे, इलजाम ये भी लगा की इनका कार्यकर्तोओं और आम लोगों से ताल-मेल भी उतना अच्छा नहीं था जितना की प्रियंका गांधी का है,क्योंकि प्रियंका गांधी के काम करने का तरीका इन नेताओं से ठीक विपरीत है उनका ताल-मेल अमेठी रायबरेली में आम लोगों और कार्यकर्ताओं से अच्छे माने जाते हैं जिसका फायदा कांग्रेस अब बाकी जिलों में भी देखाना चहती है शायद यही कारण है कि प्रियंका को पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया गया है।
सपा-बसपा गठबंधन में हलचल क्यों ?
कांग्रेस ने हाल फिलहाल में प्रियंका गांधी को महासचिव और पूर्वी उत्तर-प्रदेश का प्रभारी बनाकर सभी राजनीतिक दल की चिंता बढ़ा दी है जिसका असर बसपा-सपा गठबंधन में साफ देखा जा सकता है, 12 जनवरी को एक साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सपा-बसपा ने अपने गठबंधन का एलान किया था साथ ही दोनों पार्टियों में सीटों का भी बटवारा हो गया था जिसके बाद ये कयास लगाया जा रहा था कि जल्द उम्मीदवारों की घोषणा भी कर दी जाएगी, लेकिन ऐसा होता उससे पहले ही कांग्रेस ने आपना प्रियंका कार्ड खेल दिया जिसकी उम्मीद शायद किसी ने भी नहीं की थी। प्रियंका की एंट्री होते ही बयानों का दौर चालू हो गया, सभी पार्टीयां प्रियंका की एंट्री को ऐसे बताने लगे जैसे की मानो प्रियंका की एंट्री से उनकी रणनीति में कोई बदलाव नहीं आने वाला है पर शायद ऐसा होना संभव नहीं है, दैनिक जागरण में छपी एक खबर के मुताबिक प्रियंका की एंट्री के मद्देनजर मुस्लिमों के बदलते तेवरों को देखकर मायावती ने बिजनौर जिले की नगीना संसदीय सीट से चुनाव लड़ने का मन भी बदल लिया है। नगीना से पूर्व विधायक गिरीश चंद्र जाटव अब बसपा के उम्मीदवार हो सकते हैं। मायावती के अंबेडकरनगर से चुनाव लड़ने की भी चर्चा थी,लेकिन अब यहां से राकेश पाण्डेय को ही टिकट मिलना तय माना जा रहा है। इतना ही नहीं 28 जनवरी को सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कि जिसमें अखिलेश ने कहा यदि कांग्रेस को बीजेपी को आने वाले 2019 लोकसभा चुनाव में हराना है तो कांग्रेस को सपा-बसपा गठबंध के साथ आना चाहिए और हमने कांग्रेस के लिए अमेठी-रायबरेली की सीट भी छोड़ रखी है। अखिलेश इतने पर ही नही रुके उन्होनें प्रियंका की एंट्री का स्वागत भी किया साथ ही कहा कि नया भारत बनाने के लिए युवाओं को राजनीति में आना ही चाहिए। इस तरह से अखिलेश के बदलते तेवर और मायावती की बदलती रणनीति बताती है कि किस तरह से प्रियंका उनके दलित और मुस्लिम वोट पर असर कर सकतीं हैं।
जातीय समीकरण से किसे फ़ायदा और किसे नुकसान हुआ
जातीय समीकरण: उत्तर प्रदेश में 40% प्रतिशत पिछड़ी जातियां है जिनमे (यादव,कुर्मी,कुम्हार,नाई,कश्यप आदि) जातियां है इस 40% प्रतिशत में लगभग 18%प्रतिशत और धर्मों की भी जातियां है, तो वहीं 21.2% प्रतिशत दलित और लगभग 19.26% प्रतिशत मुस्लिम भी है, यानि उत्तर प्रदेश की बहुत बड़ी जनसंख्या पिछड़ी जातियों, दलित और मुस्लमानों की है, इन्हीं जातियों और धर्मों के आधार पर उत्तर प्रदेश की रणनीति बनती और बगड़ती हैं। कहतें हैं 2017 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश की हार का एक बड़ा कारण यूपी का जाति समीकरण बिगड़ने और मुसलमानों की नाराजगी से हुआ था, क्योंकि मुजफ्फनगर दंगे के बाद अखिलेश को 6 महीने का वक्त लगा मुजफ्फनगर के मुसलमानों से मिलने में. इतना हुआ ही था की दादरी कांड हो गया उसने सपा कर्याकाल पर एक और कांड का दब्बा लगा दिया। अबतक पिछले 15 सालों में जो 60 प्रतिशत मुसलमानों का वोट सपा को जाता था 2017 विधानसभा चुनाव में नही जाता दिखा और बचा-कुचा नुकसान कांग्रेस के साथ गठबंधन, पार्टी में अंतर-कलह ने कर दिया था। इतना सब होने के बाद बसपा एक मजबूत स्थिती में आ गई, कांग्रेस के पास चहरे के नाम पर कुछ नही था सपा में उतार चड़ाव ने बसपा की रहा और असान कर दी थी और सबको यह लगा की अगली सरकार मायावती ही बनाएंगी। लेकिन ऐसा नही हुआ और इस मौके का सही फायदा बीजेपी ने उठाया इसके लिए बीजेपी ने पहले केशव प्रसाद मौर्य को राज्य में पार्टी प्रमुख बनाया, बीएसपी से नाराज हुए स्वामी प्रसाद मौर्य को पार्टी में शामिल किया. ज्यादा से ज्यादा जातियों को चुनाव में जोड़ा जा सके इसके लिए पार्टी की तरफ से मुख्यमंत्री पद के लिए किसी चेहरे को प्रोजेक्ट नहीं किया गया जिससे जातियों का बड़ा गठजोड़ बनने में किसी तरह की बाधा का सामना न करना पड़े. पार्टी ने अपने निशाने पर समाजवादी पार्टी के खेमे से गैर-यादव और बहुजन समाज पार्टी से गैर-जाटव वोट पर नजर रखते हुए अपने कैंडिडेट मैदान में उतारे. इसके चलते ही बीजेपी ने 150 सीट से गैर-यादव ओबीसी उम्मीदवार उतारे. वहीं अपना दल और अन्य छोटे दलों के साथ गठबंधन से पार्टी ने पटेल, कुर्मी और राजभर वोटों को अपनी ओर खींचने में सफलता पाई, साथ ही बीजेपी ने अपना सबसे महत्वपूर्ण कार्ड राम मंदिर के नाम पर हिंदुत्व का भी खेला जिसका साफ-साफ फायदा पार्टी को मिलता हुआ दिखा।इन सभी समीकरणों के साथ-साथ पार्टी को नोटबंदी और मोदी लहर का फायदा भी मिला जो दिल्ली और बिहार की हार के बाद खत्म मानी जा रही थी। ये तो बात थी पिछले चुनाव की पर शायद इस बार स्थिती अलग मानी जा रही है क्योंकि सपा-बसपा गठबंधन कर अपने पिछले वोट वापस पाने की कोशिश में हैं तो वहीं कांग्रेस का मनोबल भी तीन राज्यों में जीत के बाद बढ़ा है साथ ही अब कांग्रेस के पास प्रियंका का भी साथ है। प्रियंका के आने से कांग्रेस अब फ्रंटफुट पर खेलने की बात कर रही है. प्रियंका के जरिए कांग्रेस पूर्वी उत्तर प्रदेश पर हमला बोलना चहती है क्योंकि उसका पहला निशाना सीएम योगी और पीएम मोदी हैं। क्योंकि एक गोरखपुर (योगी) सीट से आते है और दूसरे वाराणसी (मोदी) से हैंयानि की बड़े नेता पर हमला कर वह आगामी विधानसभा चुनाव के बारे में भी सोच रहें है। तो अब ये देखना होगा 2019 में उत्तर प्रदेश में कौन कितना कमाल दिखाता है। क्या कांग्रेस प्रियंका के जरिये अपना खोया हुआ वोट वापस पा लेती है? या फिर सपा-बसपा गठबंधन अपनी साख बचा पायेंगे? या बीजेपी सत्ता मेंवापस आएगी?।

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