कर्नाटक की राजनीतिक नौटंकी


कर्नाटक की राजनीतिक नौटंकी पार्ट-1

कर्नाटक एक ऐसा प्रदेश जहां गठबंधन की सरकार आजतक आपना कोई भी कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी और आगे भी सब कुशल-मंगल हो इसकी भी कोई उम्मीद नज़र नहीं आती दिख रही है। 15 मई 2018 को शुरु हुई कर्नाटक की कहानी जो आज भी अधूरी है, 15 मई को विधानसभा चुनाव के परिणाम घोषित होते हैं और किसी भी राजनीतिक पार्टी को बहुमत प्राप्त नही होता,परिणाम में बीजेपी को 104 सीटें मिली और वह प्रदेश की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी तो वहीं कांग्रेस को 78,जेडीएस को 37,बीएसपी,केपीजेपी और निर्दलीययों को एक-एक सीट प्राप्त हुई। यही है वो परिणाम जिसके कारण आजतक कर्नाटक में नाटक जारी है,क्योंकि बीजेपी प्रदेश की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी तो नियम के अनुसार राज्यपाल वजुभाई वाला ने बीजेपी को सरकार बनाने का न्योता दिया,बी.एस येदियुरप्पा( बीजेपी के उम्मीदवार ) को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलवाई साथ ही बहुमत सिद्ध करने के लिए 15 दिनों का समय भी दे डाला.राज्यपाल का बीजेपी को बहुमत सिद्ध करने के लिए इतना लंबा समय देना यह बात कांग्रेस और जेडीएस को नागवार गुजरी और दोनो दलों ने इसको रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में इसके खिलाफ याजिका दायर कर दी,जिसके बाद सुप्रिम कोर्ट ने इस पर संज्ञान लेते हुए राज्यपाल द्वारा बीजेपी को बहुमत सिद्ध करने के लिए दिए गये 15 दिनों की अवधि को घटाकर 24 घंटे कर दिया। येदियुरप्पा इतने कम समय में अपना बहुमत साबित नही कर पाए और 24 घंटे में यानि 19 मई 2019 को अपना इस्तीफा राज्यपाल को सौपना पड़ा। इसके बाद साथ आई दो धुरविरोधी पार्टियां कांग्रेस और जेडीएस ने बहुमत सिद्ध करके कुमारस्वामी ( जेडीएस के उम्मीदवार ) के प्रतिनिधित्व में सरकार बनाई,कुमारस्वामी कर्नाटक के नये सीएम बने हालांकि कुमारस्वामी यह बात जानते थे कि बीजेपी चुप बैठेने वालों में से नही है और अगले पांच साल उनपर राजनीतिक संकट मंडराता रहेगा, हो सकता है कि बीजेपी विधायकों को तोड़ने की कोशिश भी करे.

कर्नाटक की राजनीतिक नौटंकी पार्ट-2

कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस की गठबंधन वाली सरकार 14 महीने तक चली, बीच-बीच में दोनो के अनबन की खबरें भी आती रहीं.इन खबरों के बीच 1 जुलाई 2019 को खबर आई की कांग्रेस के दो विधायकों ने कुमारस्वामी सरकार से मदभेदों का हवाला देकर इस्तीफा दे दिया है हालांकि कांग्रेस की तरफ से कहा गया कि इससे सरकार पर कोई फर्क नहीं पड़ता,शायद इन दो इस्तीफों से सरकार पर कोई फर्क ना पड़ता लेकिन जब इन इस्तीफों में इजाफा हुआ और इसी संदर्भ में 6 जुलाई को कांग्रेस के छ: और जेडीएस के तीन विधायकों ने इस्तीफा दिया. अबतक विधानसभा स्पीकर को 11 विधायकों का इस्तीफा मिल चिका था.इसी बीच विधायकों के सौदेबाजी की खबरें आने लगी,अमेरिका गए कुमारस्वामी सब छोड़ वापस कर्नाटक लैटे तो दूसरी तरफ कांग्रेस अपने रुठे हुए विधायकों को मनाने में जुट गई,लेकिन इन सब के बावजूद इस्तीफों का सिससिला जारी रहा और अगले दो दिनों में दो और निर्दलीय विधायकों ने अपना इस्तीफा सौंप दिया था इस्तीफे की संख्या अबतक 13 हो जुकी थी सरकार अल्पमत में आ जकी थी ऐसे में बीजेपी ने मौके के फायदा उठाकर विधानसभा स्पीकर से फ्लोर टेस्ट की मांग की. अबतक सारे झटके विधायक ही सरकार को दे रहे थे ऐसे में एक झटका स्पीकर रमेश कुमार ने भी विधायकों को दे दिया, स्पीकर ने इस्तीफे का फॉर्मेट सही नही है कहकर आठ विधायकों का इस्तीफा ना मंजूर कर दिया। विधायक शिकायत लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुँचे,सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में  विधायकों को कहा की वो चाहे तो फ्लोर टेस्ट में शामिल हो या ना हों यह उनपर निर्भर करता है लेकिन स्पीकर एक तय समय में विधायकों के इस्तीफे पर फैसला लें.अबतक सब कुछ सरकार के विरुद्ध ही हो रहा था की ऐसे में खबर आई की कांग्रेस के विधायक रामलिंगा रेड्डी ने अपना इस्तीफा वापस ले लिया है.जैसे-जैसे दिन बीते वैसे-वैसे बागी विधायकों की संख्या भी बढ़ती गई अब यह संख्या (17) हो चुकी थी।

खूबसारी राजनीतिक नौटंकी के बाद फ्लोर टेस्ट का दिन आया तरीख थी 23 जुलाई 2019 सदन की कार्यवाही शुरु हुई कार्यवाही में 20 विधायकों ने हिस्सा नहीं लिया था जिससे सदन की प्रभावी क्षमता घटकर 204 रह गयी. कार्यवाही में कांग्रेस-जेडीएस (17), बसपा (एक), निर्दलीय (दो) के विधायक नहीं आए थे ऐसे में जादुई आकड़ा (103) का रह गया था फ्लोर टेस्ट हुआ और टेस्ट में कांग्रेस-जेडीएस (99) सीटें ही जुटा पाई तो वहीं बीजेपी (105) सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी इस तरह एक बार फिर कर्नाटक में गठबंधन की सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी और मुख्यमंत्री कुमारस्वामी को इस्तीफा देना पड़ा।



23 जुलाई को इधर सरकार गिरी तो उधर स्पीकर रमेश कुमार की मुश्किलें बढ़ने लगी क्योंकि उनपर 17 बागी विधायकों के इस्तीफे को लेकर फैसला लेना था और साथ ही अब बीजेपी ने भी उनके इस्तीफे की बात छेड़ दी थी,बीजेपी की मांग को स्पीकर रमेश कुमार दरकिनार करते हुए 25 जुलाई को कांग्रेस के एक और दो निर्दलीय विधायकों को 2023 के विधानसभा चुनाव तक के लिए अयोग्य घोषित कर दिया। दिन बीता येदियुरप्पा ने बिना देर किये अगले दिन 26 जुलाई को बिना मंत्रीमंडल के अकेले ही शपथ ग्रहण की और चौथी बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने।
                                      

स्पीकर रमेश कुमार अब भी अपना काम कर रहे थे और बीजेपी लगातार उनके इस्तीफे की मांग कर रही थी लेकिन रमेश कुमार ने अबतक अपना इस्तीफा नहीं दिया था ऐसे में युदियुरप्पा ने स्पीकर के खिलाफ अविश्वाश प्रस्ताव लाने तक की बात कह दी,रमेश कुमार यह बात जानते थे कि आज नही तो कल उन्हें इस पद से इस्तीफा देना ही पड़ेगा, स्पीकर रमेश ने जाते-जाते एक ऐसा काम कर दिया जिससे आने वाले समय में बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ सकता है उन्होने ने  28 जुलाई को 14 और बागी विधायकों को दल-पदल कानून के तहत 2023 विधानसभा चुनाव तक के लिए अयोग्य घोषित कर दिया.यानि अब कर्नाटक विधानसभा की 17 सीटें खाली हैं जिन पर उपचुनाव हो सकता है और यदि बीजेपी इनमे से 8 या 9 सीटे नहीं जीत पाती है तो ऐसे में उनकी सरकार के गिरने की स्थिति भी पैदा हो सकती है। हालांकि बागी विधायकयों ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याजिका दायर की है अब इन बागी विधायकों कि किसमत सुप्रीम कोर्ट के हाथों में है.इनता सब होने के बाद एक तरफ 29 जुलाई को येदियुरप्पा सरकार ने 106 सीटों ( 105 बीजेपी+ 1 निर्दलीय ) के साथ ध्वनिमत से बहुमत साबित कर सरकार बनाई तो दूसरी तरफ स्पीकर केआर रमेश कुमार ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। अब कर्नाटक में कितना नाटक बाकी है यह आने वाला समय ही बतायेगा........

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