'RTI' मुझमें क्या खराबी है ?
आरटीआई ( राईट टू इन्फाॅरमेशन ) सूचना का अधिकार एक लंबी लड़ाई के बाद 15 जून 2005 को इसे अधिनियमित किया गया और पूर्णतया 12 अक्टूबर 2005 को सम्पूर्ण धाराओं के साथ लागू कर दिया गया। इस अधिकार के साथ जहां भारत का एक नागरिक मजबूत स्थिति में आ गया तो वहीं देश का लोकतंत्र भी मजबूत स्थिति में आ खड़ा हुआ,क्योंकि ये भारत में पहली बार होने जा रहा था कि जिस व्यक्ति को जंतना ने चुना था अब उसकी कार्यशैली पर भी वह नजर रख सकता था। जहां एक तरफ देश का नागरिक सरकारी संस्थानों की जानकारी लेने का हकदार हो गया था तो वहीं इस अधिकार में सेक्शन (8) के तहत गोपनीयता का भी खास ख्याल रखा गया था।इस अधिकार का पिछले 14 सालों से इस्तेमाल किया जा रहा है और अबतक इसमें किसी भी प्रकार की कोई कमी नही पाई गई उटला इसमें इजाफे की ही मांग होती रही है,जैसे कि राजनीतिक पार्टियों के पार्टी फंड को सूचना के अधिकार के अंतरगत सम्मिलित करने की मांग समय-समय पर उठती रही है। जबकि इसी RTI की वजह से ना जाने कितने घोटाले उजागर हुए हैं, फिर अब ऐसा क्या हुआ की RTI अब सरकार से पूछ रही है कि मुझमें क्या खराबी है?। दरअसल 24 जुलाई 2019 को सूचना का अधिकार संशोधन बिल 2019 राज्यसभा में पास हो गया,इस बिल में सेक्शन 13,16 और 27 में बदलाव किये गये हैं यह सेक्शन सूचना आयुक्तों की नियुक्ति,कार्यकाल और उनका दर्जा निर्धारित करते हैं। इन तीनो सेक्शनों में बदलावों के बाद इन चिजों पर केंद्रिय सरकार निर्णय लेगी:
1.केंद्रिय और राज्य स्तरीय मुख्य सूचना आयुक्तों की नियुक्ति अब केंद्रीय सरकार करेगीं जो पहले सरकार के अधिकार क्षेत्र में नही था यानि अब सरकार तय करेगी की कौन इस पद पर बैठेगा।
2.केंद्रिय और राज्य स्तरीय मुख्य सूचना आयुक्त पांच साल के लिए नियुक्त किये जाते हैं बदलाव के बाद सरकार इस समय सीमा को बढ़ा या कम कर सकती है।
3.केंद्रिय और राज्य स्तरीय मुख्य सूचना आयुक्त की तंख्वा भी अब केंद्रिय सरकार तय करेगी।
4.केंद्रिय और राज्य स्तरीय मुख्य सूचना आयुक्त का दर्जा सुप्रीम कोर्ट के जज के दर्जे के बराबर होता है लेकिन इस बदलाव के बाद उसे भी घटा दिया गया है।
इस तरह के फैसले साफ दिखा रहे हैं कि सरकार संसद में अपने संख्या बल का इस्तेमाल खूब अच्छे से कर रही हैं। सरकार के प्रवक्ताओं का कहना है कि इस बदलाव के बाद आरटीआई की स्वायत्तता और स्वतंत्रता पर कोई खतरा नही हैं। तो वहीं इस बदलाव से ना तो विपक्ष और ना ही समाजिक कार्यकर्ता खुश हैं सभी इसकी खुलकर आलोचना कर रहे हैं हलाकि ये तो वक्त ही बतायेगा कि सरकार सूचना के अधिकार में कितना दखल देगी या नहीं,क्योंकि पहले ही सीबीआई और चुनाव आयोग जैसे स्वतंत्र संस्थान पर सरकार के पक्ष में काम करने का आरोप विपक्ष लगाती रही है ऐसे में यह बदलाव सरकार की नियत पर सवाल खड़े कर सकते हैं। इस सवाल का जवाब भी हो सकता है कि समय ही हमें दे की RTI मुझमें क्या खराबी है ?

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