70 सालों में वृत्तीय क्षेत्र में ऐसी परिस्थितियां नही देखी:राजीव कुमार नीति आयोग उपाध्यक्ष
देश के थिंक टेंक कहे जाने वाले नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार जिनके गंधे पर देश के लिए बेहतर से बेहतर नितियां बनाने की जिम्मेदारी होती है उनका कहना है कि किसी ने भी 70 सालों में ऐसी परिस्थियां नही देखी जहां सारा वृत्तीय क्षेत्र उतार-चढ़ाव के दौर से गुजर रहा हो,प्राइवेट सेक्टर में कोई भी एक दूसरे पर भरोसा करने को तैयार नही है,कोई भी किसी को कर्ज देने को तैयार नही है और सब अपना नकद दबाकर बैठे हैं। राजीव कुमार आगे कहते हैं कि देश में पहले 35 फीसदी नकद मौजूद होता था लेकिन जीएसटी और नोटबंदी के कारण उसमें और कमी आ गई है जिससे परिस्थियां और जटिल हो गई हैं। ऐसी जटिल परिस्थियों से निपटने के लिए सरकार को जल्द ही विषेश कदम उठाने होंगे और प्राइवेट सेक्टर की आशंकाओं को दूर करना होगा। नोटबंदी और जीएसटी के साथ साथ राजीव ने इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड को भी वृत्तीय क्षेत्र में उतार-चढ़ाव का कारण माना है। राजीव के मुताबिक 2009 से 2014 तक आंख बंद कर कर्ज बांटने की वजह से एनपीए बढ़ा,इसलिए स्थिति यहां तक पहुंच गई।
राजीव कुमार का यह बायान तब आया है जब देश में अलग-अलग सेक्टरों में नौकरियों के जाने कि आशंकाएँ पैदा हो चुकी हैं ऑटो सेक्टर में दस लाख नौकरियों के जाने की आशंका पैदा हुई है और FMCG सेक्टर के हालात भी बहुत अच्छे नहीं चल रहे हैं जहां पारले ने लगभग दस हाजार कर्मचारियोंं को कार्यमुक्त करने की बात कही है उसके साथ-साथ हाल फिल-हाल में टेक्सटाइल इंडस्ट्री अशोसिएशन ने इंडियन एक्सप्रेस में एक विज्ञापन छपवाकर सरकार को जताया है कि इस सेक्टर के हालात भी ठीक नही हैं। इस विज्ञापन के जरिए अशोसिएशन ने बताने कि कोशिश की है टेक्सटाइल सेक्टर का एक्सपोर्ट पिछले साल के मुताबिक 35% घट गया है, इसका असर केवल कर्मचारियों पर ही नही बलकि देश के किसानों पर भी पड़ेगा क्योंकि एक्पोर्ट के कम होने के कारण एक-तिहाई क्षमता टेक्सटाइल इंडस्ट्री की कम हो गई है जिससे वह अब भारतीये किसानों से कपास नही खरीद पाएंगे।
ऑटोमोबाइल सेक्टर पिछले दो सालों से लगातार मंदी की तरफ बहुत तेजी से बढ़ रहा है इस सेक्टर में लगातार मंदी ने कई लोगों की नौकरियां छीन ली हैं तो वहीं आने वाले समय में और भी नौकरीयों के जाने का खतरा मंडरा रहा है। फेडरेशन ऑफ़ ऑटो डीलर्स एसोसिएशन के मुताबिक सिर्फ पिछले तीन महीनों में ही दो लाख से ज्यादा लोगों की नौकरियां जा चुकी हैं और अगर हालात जल्द नही सुधरते हैं तो आने वाले समय में इस सेक्टर से जुड़े लगभग 10 लाख लोगों की नौकरियां जा सकती हैं। इस सेक्टर से जुड़े सभी प्रकार के लोग इस मंदी से प्रभावित हैं फिर चाहे वो मैन्युफैक्चरर हो या डीलर्स सभी जगह काम करने वाले लोगों की नौकरियों के जाने का डर बना हुआ है। सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (सिआम) के आंकड़ों के मुताबिक घरेलू बिक्री 18.71% घट गई है। यह 19 साल में सबसे तेज गिरावट है। इससे पहले दिसंबर 2000 में 21.81% कमी दर्ज की गई थी।कार डीलर्स का कहना है पिछले तीन महीनों में 10 से 15 प्रतिशत सेल्स कम हो गई है, देशभर में 250 से ज्यादा सो रुम बंद दो जुके है, हाल ही में हीरों मोटोकॉर्प ने सेल्स गिरने के कारण 15 से 18 अगस्त तक के लिए अपनी मैन्युफैक्चरिंग भी रोक दी थी।सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैनुफैक्चरर्स का कहना है कि सरकार यदि GST कि दर 28% प्रतिशत से घटाकर 18% प्रतिशत कर दे दो इस सेक्टर में सुधार आ सकता है,लेकिन सरकार GST की दर को कम करने पर असहमत है।
राजीव कुमार का यह बायान तब आया है जब देश में अलग-अलग सेक्टरों में नौकरियों के जाने कि आशंकाएँ पैदा हो चुकी हैं ऑटो सेक्टर में दस लाख नौकरियों के जाने की आशंका पैदा हुई है और FMCG सेक्टर के हालात भी बहुत अच्छे नहीं चल रहे हैं जहां पारले ने लगभग दस हाजार कर्मचारियोंं को कार्यमुक्त करने की बात कही है उसके साथ-साथ हाल फिल-हाल में टेक्सटाइल इंडस्ट्री अशोसिएशन ने इंडियन एक्सप्रेस में एक विज्ञापन छपवाकर सरकार को जताया है कि इस सेक्टर के हालात भी ठीक नही हैं। इस विज्ञापन के जरिए अशोसिएशन ने बताने कि कोशिश की है टेक्सटाइल सेक्टर का एक्सपोर्ट पिछले साल के मुताबिक 35% घट गया है, इसका असर केवल कर्मचारियों पर ही नही बलकि देश के किसानों पर भी पड़ेगा क्योंकि एक्पोर्ट के कम होने के कारण एक-तिहाई क्षमता टेक्सटाइल इंडस्ट्री की कम हो गई है जिससे वह अब भारतीये किसानों से कपास नही खरीद पाएंगे।
टेक्सटाइल सेक्टर के हालात बाकियों से भी ज्यादा खराब
टेक्सटाइल
सेक्टर में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप से लगभग दस करोड़ लोग इस इंडस्ट्री से
जुड़े हैं, टेक्सटाइल
सेक्टर में मंदी के कारण अबतक लगभग एक लाख लोगों की नौकरियां जा जुकी हैं और लगभग 25 लाख लोगों की नौकरियां और
जा सकती हैं, इस सेक्टर में
नौकरियों के जाने का एक कारण चीन भी है जिसका कच्चा माल बांग्लादेश जाता है और वहां से वस्त्र के रूप में
भारत आता है. चीन सरकार अपने निर्यातकों को 17 फीसदी की निर्यात छूट देती है. इससे चीनी वस्तुएं भारतीय वस्तुओं की तुलना में 5-6 फीसदी सस्ती होती हैं.यही नहीं, इस दौरान आयात 5.85 अरब डॉलर से बढ़कर 7.31 अरब डॉलर हो गया है.इस आयात ने पहले अपने
बाजारों को तोड़ा और बचा कुचा सरकार ने नोटबंदी के ठीक बाद जीएसटी लगाकर तोड़
दिया। यानी एक तरफ
यहां के लोकल उद्योग को टैक्स लगाकर परेशानी में डाला गया, वहीं इसे तबाह करने के लिए
इम्पोर्ट ड्यूटी भी कम कर दी गयी.भारतीय कपड़ा उद्योग परिसंघ के अध्यक्ष संजय जैन ने कहा कि जीएसटी के
क्रियान्वयन के बाद आयात शुल्क में काफी गिरावट देखी गई है. जिसने सस्ते आयात को
प्रोत्साहित किया है, इस सबसे लागत पर 6-7 प्रतिशत असर पड़ा, जिससे कपड़ा निर्माताओं के मुनाफे को सख्त चोट पहुंची. इसके अलावा सरकार ने
प्रदूषण को देखते हुए टेक्सटाइल सेक्टर को कोयले के बजाए शहरी क्षेत्रों में गैस
के इस्तेमाल की बात कहीं जिससे लागत और बढ़ने लगी और मुनाफा कम होने लगा। अब इस
सेक्टर की हालत ऐसी है कि प्रोडक्शन भी कम है और डिमाड भी कम है यानि हर सूरत में
यह सेक्टर साल-दर-साल बरबादी की ओर बढ़ रहा है
ऑटो सेक्टर के क्या हैं हालात
क्यों पारले ने कही दस हजार कर्मचारियों को कार्यमुक्त करने की बात
देश की सबसे
बड़ी बिस्कुट कंपनी पारले जी ने हाल ही में सेल्स कम होने के कारण 10000 कर्मचारियों को
काम से निकाले की बात कही है पारले में एक लाख कर्मचारी काम करते हैं जिसमें से 10000 कर्मचारियों को
कार्यमुक्त करने कि बात कह दी गई है। कंपनी के कैटिगरी हेड मयंक शाह का कहना है कि 'हमने 100 रुपये प्रति किलो या उससे कम कीमत वाले बिस्किट पर GST घटाने की मांग की है। ये आमतौर पर 5 रुपये या कम के पैक में
बिकते हैं। हालांकि अगर सरकार ने हमारी मांग नहीं मानी तो हमें अपनी फैक्टरियों
में काम करने वाले 10,000 लोगों को निकालना पड़ेगा। सेल्स घटने से हमें भारी नुकसान हो रहा है।' GST लागू होने से पहले 100 रुपये प्रति किलो से कम कीमत वाले बिस्किट पर 12 पर्सेंट टैक्स लगाया जाता था। कंपनियों को उम्मीद थी कि प्रीमियम बिस्किट के
लिए 12 पर्सेंट और सस्ते बिस्किट के लिए 5 पर्सेंट का GST रेट तय किया जाएगा। हालांकि, सरकार ने दो साल पहले जब GST लागू किया तो
सभी बिस्किटों को 18 पर्सेंट स्लैब में डाला गया। इसके चलते कंपनियों को इनके दाम बढ़ाने पड़े, जिसका असर
सेल्स पर पड़ा। शाह ने बताया कि पारले को भी 5 पर्सेंट दाम बढ़ाना पड़ा, जिससे सेल्स
में गिरावट आई।
इन सभी
सेक्टरों की बगड़ती स्थितियां बताती हैं कि जल्द ही सरकार को कोई फैसला लेना होगा
वरना हालात बत से बत्तर हो सकते हैं और जहां तक सवाल है कि GST और नोटबंदी
व्यापार के लिए सरकार का अच्छा फैसला था तो शायद यह परिस्थियां सरकार को बेहतर बता
सकती हैं कि फैसला कितना सही या गलत था।





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