महाराष्ट्र में महाभारत से खतरे में पढ़ी महाविकास अघाड़ी, तोड़ सकते हैं गठबंधन : संजय राउत



Maharashtra Political Crisis: महाराष्ट्र में इस वक्त महाभारत छिड़ी हुई है हालात ऐसे बनते नजर आ रहे हैं जहां शिवसेना (Shivsena) महाविकास अघाड़ी के साथ अपना गठबंधन भी तोड़ने को तैयार है क्योंकि सरकार गिरने से ज्यादा उन्हे अपने घर गिरने की आशंका ज्यादा है. शिवसेना के बागी मंत्री एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) कल जो सिर्फ 12 विधायकों के साथ गायब थे अब उनके साथ शिवसेना के 42 विधायक (MLA) हैं. इस बात की पुष्टी एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) ने एक विडियो जारी कर की है.

वहीं दूसरी तरफ उद्धव ठाकरे ने जो बैठक मातोश्री में बुलाई थी उसमें भी मात्र 13 विधायक ही पहुँचे थे इससे साफ है कि ज्यादा विधायक शिवनाथ शिंदे के साथ हैं. एकनाथ शिंदे और बागी विधायकों का कहना है कि शिवसेना अपनी हिंदुत्व की विचारधारा से अलग हो गई है वह सत्ता के लाचल में अपनी विचारधारा को भूल रही है. इसके अलावा शिंदे का कहना है कि इस गठबंधन से एनसीपी (NCP) मजबूत हो रही है और शिव सेना कमजोर पढ़ रही है. अपने बयानों में शिंदे ने यह भी आरोप लगाया कि आदित्य ठाकरे (Aditya Thackeray) उनके मंत्रयालय में ज्यादा दखल देते थे और उन्हे सरकार से कम फंड मिलता था जिससे उन्हे काम करने में बहुत दिक्कत होती थी. इन सब बातों से नाराज हो वह चाहते हैं कि शिवसेना गठबंधन तोड़ कर बीजेपी (BJP) के साथ सरकार बना ले.


यदि विधायक कहेंगे तो मै सीएम पद से इस्तीफा दे दूंगा: उद्धव ठाकरे

इन सभी बातों की बीच लग रहा था शायद उद्धव ठाकरे अपना इस्तीफा सौंप देगें लेकिन ऐसा नहीं हुआ वह फेसबुक के माध्यम से जंतना के बीच आए और कहा जो भी नाराज विधायक हैं अगर उनमें से कोई मेरे सामने आकर कहेगा तो मैं अपना इस्तीफा सौंप दूंगा लेकिन अबतक कोई विधायक सामने नहीं आया.


कल तक सबको लग रहा था कि बात सिर्फ सरकार गिराने तक है लेकिन बात सरकार गिराने से ज्यादा आगे बढ़ गई है जहां एक और शिवसेना ने एकनाथ शिंदे को नेता प्रतिपक्ष के पद से हटा दिया तो वहीं शिंदे ने भी वार करते हुआ कहा है कि, उनके पास शिवसेना के सदन में उद्धव से ज्यादा विधायक हैं ऐसे वह पार्टी सिंबल के हकदार है. कल तक जो राजनीति सरकार बनाने और गिराने तक थी वह अब पार्टी सिंबल छीनने तक पहुंच चुकी है.


क्या कहता है चुनाव चिन्ह कानून ?

क्या शिंदे जो पार्टी सिम्बल पर अपना दावा कर रहे हैं वह उन्हे इतनी आसानी से मिल जाएगा ? चुनाव आयोग राजनीतिक पार्टियों को मान्यता देता है और चुनाव चिह्न भी आवंटित करता है. चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968 पार्टियों की पहचान और चुनाव चिह्न आवंटित करने से जुड़ा हुआ है. जब कभी भी एक पार्टी के दो गुट आपस में पार्टी सिम्बल पर अपना-अपना दावा करते है तो ऐसी स्थिति में चुनाव आयोग ही अंतिम फैसला लेता है. दोनो गुटों के दावों को चुनाव आयोग जांचता है. चुनाव आयोग इस बात को देखता है कि पार्टी के संगठन और सदन ( विधायक और सांसद) से जुड़े पार्टी के ज्यादातर पदाधिकारी ( यह वह लोग होते हैं जो पार्टी के कार्यों का देखते या कहें चलाते हैं) किस गुट की ओर हैं और साथ ही दोनो गुटों के पार्टी पर दावे के तथ्य कितने सही हैं, उसके बाद ही चुनाव आयोग अपना फैसला करता है उदारण के तौर पर आप समाजवादी पार्टी के विवाद को देख सकते है जहां अखिलेश अपने चाचा शिवपाल के दावे के खिलाफ सिम्बल पाने में सफल हुए थे. लेकिन यह जरूरी नहीं है कि चुनाव आयोग यह सिम्बल किसी एक गुट को देने के लिए बाध्य है. यदि परिस्थितियां किसी एक के पक्ष में नहीं हुई तो वह सिम्बल को जब्त भी कर सकती है. आदेश के अनुच्छेद 15 में इस पर विस्तार से जानकारी दी गई है.


शिंदे का साफ कहना है कि पार्टी पहले इस गठबंधन से बाहर आए और जिस हिंदुत्व की विचारधारा के साथ उसने मिलकर बीजेपी के साथ चुनाव लड़ा था उस बीजेपी के साथ सरकार बनाए. शिंदे का कहना है कि वह गद्दार नही है वह बालासाहेब के हिंदुत्व के साथ हैं.


हिंदुत्व पार्टी के लिए सर्वोपरि है, विधायक 24 घंटे में आकर करें बात तो जरूर जुनेगें: संजय राउत 

महाराष्ट्र में पिछले दो दिन से चल रही इस राजनीतिक हलचल के बीच शिवसेना के राज्यसभा सांसद संजय राउत ने ऐसा बायान दिया है जिससे यह साफ हो गया है कि शिवसेना पार्टी को टूटने से बचाने के लिए इस गठबंधन और सरकार दोनो को तोड़ सकती है. संजय राउत का कहना है कि हिंदुत्व उनकी पार्टी के लिए सर्वोपरि है यदि सारे विधायक 24 घंटे के अंदर आकर बात करेंगे तो हम जरूर उनकी बात मानेगें. इस बायान ने गठबंधन  की पार्टियों में हलचल मचा दि है. वहीं दूसरी और महाराष्ट्र कांग्रेस (Congress) अध्यक्ष नाना पटोले ने भी बयान देते हुए कहा कि उनके मंत्री भी इस बात की शिकायत करते थे कि उनके मंत्रालयों को कम पैसे मिलते थे. ऐसे में इस तरह कि बयानबाजी महाराष्ट्र की राजनीति को इस तरफ लेकर जा रही है कि जहां शायद अब यह गठबंधन वाली सरकार और साथ नही चल सकती.


क्या होगा अगर नहीं मना पाए नाराज विधायकों को उद्धव 


सवाल यह भी उठ रहा है कि अगर उद्धव ठाकरे अपने नाराज विधायकों को नहीं मना पाए तो क्या होगा, शिवसेना क्या करेगी ? इन परिस्थितियों में उद्धव ठाकरे या तो इस्तीफा दें या शिवसेना को फ्लोर टेस्ट के लिए जाना होगा. इस्तीफे की बात कल ही खारिज हो गई थी जब उद्धव जनता के सामने आए थे, तो ऐसे में फ्लोर टेस्ट की स्थिति बनती हुई नजर आ रही है. यदि प्लोर टेस्ट हुआ तो आशंका है कि शिवसेना इसमें फेल हो जाएगी क्योंकि नाराज विधायकों की संख्या 42 हो गई है तो ऐसे में शिवसेना का फ्लोर टेस्ट पास कर पाना लगभग ना मुमकिंन है.


तीसरी परिस्थिति के मुताबिक यादि नाराज विधायक बीजेपी के साथ जाते हैं तो वह जरूर सरकार बना सकती है क्योंकि बीजेपी के पास 105 विधायक पहले से हैं और वहीं यदि यह विधायक बीजेपी को समर्थन कर दें तो यह संख्या 147 हो जाएगी, बीजेपी के साथ कुछ निर्दल विधयाक भी हैं, ऐसे में बीजेपी (BJP) बहुमत का 144 जादुई आंकड़ा छू सकती है. 


चौथी परिस्थिति के मुताबिक यदि बागी विधायक की संख्या 37 से कम रह जाती है और वह बीजेपी को समर्थन कर भी देते हैं तो दलबदल कानून के मुताबिक इन सभी विधायकों को इस्तीफा देना होगा और फिर से चुनाव में जाना पढ़ेगा जैसा कि मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) में हुआ था.




 

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