Crime Against SC and ST: दलित और आदिवासियों के खिलाफ देश में बढ़ रहा है अपराध, लोकसभा में मंत्री ने पेश किए आंकड़े, पढ़िए किस राज्य में सबसे ज्यादा हो रहा अपराध
अजय कुमार मिश्रा ने देश के सभी
राज्यों का आकड़ा पेश किया है. साल 2018 में एससी के खिलाफ 42793, 2019 में 45961
और 2020 में बढ़कर 50291 हो गया था. उसी तरह एसटी के मामलों में भी इजाफा देखने को
मिला है. 2018 में 6528, 2019 में 7570 और 2020 में 8272 था. यह आकड़े बताते हैं
कि पिछले कुछ सालों में दलितों और आदिवासियों का उत्पीड़न बढ़ा है.
सांसदों ने आकड़ों के साथ-साथ यह
भी पूछा था कि क्या सरकार उन जगहों की पहचान करने के लिए कोई कदम उठा रही है जहां अनुसूचित
जाति/ अनुसूचित जनजाति/ दलित पर अत्याचार होने की आशंका है. इसके
जवाब में गृह राज्यमंत्री ने जवाब में बताया कि आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात,
झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना
राज्य और अंडमान एंव निकोबार द्वीप समूह संघ राज्य की पहचान की गई है जहां
उत्पीड़न की आशंका है.
MP और राजस्थान आदिवासियों के उत्पीड़न में सबसे आगे
आकड़ों में आदिवासियों (Tribal) के
खिलाफ अपराध (Crime) के सबसे अधिक मामले मध्य प्रदेश (Madhya
Pradesh) और राजस्थान (Rajasthan) में दर्ज किए गए हैं.
साल 2018 में आदिवासियों के खिलाफ अपराध के मामले 1,868
थे वहीं साल 2019 में कम होकर 1,845 हुए लेकिन फिर साल 2020 में बढ़कर ये आंकड़ा 2,401
हो गया था. वहीं, राजस्थान में साल 2018
में 1,095 मामले दर्ज हुए तो साल 2019 में 1,797 मामले दर्ज हुए. लेकिन साल 2020 में ये आंकड़ा कम होकर 1,878 पर पहुंच गया था.
संसद में पेश किए गए आंकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश और बिहार SC वर्ग के उत्पीड़न में सबसे आगे रहे हैं. साल 2018 की अगर बात करें तो उत्तर प्रदेश में 11,924 मामले दर्ज हुए थे जो साल 2019 में बढ़कर 11,829 और साल 2020 में 12,714 हो गए. तो वहीं बिहार में साल 2018 में 7,061 मामले सामने आए जो साल 2019 में कम होकर 6,544 पर पहुंचा लेकिन साल 2020 में फिर से बढ़कर 7,368 पर पहुंच गया. उत्तर प्रदेश में मामलों के बढ़ने बावजूद सरकार का मानना है कि उत्तर प्रदेश में आने वाले सालों में उत्पीड़ नहीं होगा इसलिए आशंकाओं की सूची में उत्तरप्रदेश का नाम नहीं रखा गया है.
इन आंकड़ों के मुताबिक दलितों और आदिवासियों के खिलाफ देश में अपराध
के मामले में बढ़ोत्तरी हुई है ऐसा तब हुआ जब देश के राष्ट्रपति एक दलित समुदाय का
था और आने वाले समय में देश की राष्ट्रपति आदिवासी समुदाय की हैं. आपको क्या लगता
है सिर्फ किसी सविधानिक पद किसी व्यक्ति के बैठ जाने से उस समुदाय का कल्याण हो
जाता है अपनी राय हमे कमेंट कर जरुर बताएं.
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