गृह मंत्रालय ने जारी की NRC की फाइनल लिस्ट जारी



केंद्रीय गृह मंत्रालय ने शनिवार को एनआरसी की अंतिम सूची जारी कर दी है। इसे आप nrcassam.nic.in पर क्लिक करके देख सकते हैं। इस सूची में तीन करोड़ 11 लाख 21 हजार चार लोगों के नाम एनआरसी सूची में शामिल हैं तो वहीं 19 लाख 6 हजार 657 लोगों के नाम सूची में शामिल नहीं हैं। सूची को लेकर लाखों लोगों के दिल की धड़कन अपने भविष्य को लेकर बढ़ी हुई थी जिनका नाम लिस्ट में आ गया है वह बहुत खुश हैं लेकिन लिस्ट में नाम ना आने वाले दुखी है। हालांकि राज्य सरकार ने सूची में नाम नहीं आने पर लोगों को भयभीत न होने और हरसंभव मदद करने का आश्वासन दिया है। कई संवेदनशील इलाकों में धारा 144 लागू की गई है और राज्य में सुरक्षाबलों की 218 कंपनवियों को हाई अलर्ट पर रखा गया है।

NRC लिस्ट में नाम नहीं आने से क्या होगा?

सिर्फ़ एनआरसी में नाम ना आने से कोई विदेशी नागरिक घोषित नहीं होगा.जिनके नाम शामिल नहीं हैं, वह इसके बाद फ़ॉरेन ट्रायब्यूनल या एफटी के सामने अपने काग़ज़ों के साथ पेश होना होगा, जिसके लिए उन्हें 120 दिन का समय दिया गया है.किसी के भारतीय नागरिक होने या न होने का निर्णय फ़ॉरेन ट्राइब्यूनल ही करेगी. इस निर्णय से असंतुष्ट होने पर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट जाने का विकल्प मौजूद है.विदेशी नागरिक घोषित होने पर पर क्या होगा, इस पर फ़िलहाल सरकार की ओर से कोई अधिकारिक बयान नहीं दिया गया है लेकिन क़ानूनन उन्हें हिरासत में लेकर निर्वासित करने का प्रावधान है.

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कहानी वो जहां से NRC का किस्सा शुरु हुआ


असम भारत का इकलौता ऐसा राज्य है जहाँ 1951 में एनआरसी की व्यवस्था लागू कि गई थी, यह व्यवस्था उन लोगो के लिए बनाई गई थी जो विदेशी होने के बावजूद गैर-कानूनी तरीके से देश में रह रहे थे. नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस (एनआरसी) के मुताबिकजिस व्यक्ति का सिटिजनशिप रजिस्टर में नाम नहीं होता है उसे अवैध नागरिक माना जाता है. इसे 1951 की जनगणना के बाद तैयार किया गया था. इसमें यहां के हर गांव के हर घर में रहने वाले लोगों के नाम और संख्या दर्ज की गई है. 


1905 में जब अग्रेजों ने बंगाल का विभाजन कर पूर्वी बंगाल बनाया था जो बाद में जाकर असम के रूप में स्थापित हुआ था, दरासल असम की सीमाएं तब के पूवी पाकिस्तान और आज के बांग्लादेश से जुड़ी हैं और 1947 में बटवारे के समय असम का एक हिस्सा सिलहट पूर्वी पाकिस्तान में चला गया था। 1947 में भारत-पाकिस्‍तान के बंटवारे के बाद कुछ लोग असम से पूर्वी पाकिस्तान चले गएलेकिन उनकी जमीन असम में थी और लोगों का दोनों और से आना-जाना बंटवारे के बाद भी जारी रहा. इसके बाद 1951 में पहली बार एनआरसी के डाटा का अपटेड किया गया. तब के पूर्वी पाकिस्तान में भाषा को लेकर आंतरिक विवाद चल रहा था उस समय पूर्वी पाकिस्तान में परिस्थितियां इतनी हिंसक हो गई कि वहां रहने वाले हिंदू और मुस्लिम दोनों ही तबकों की एक बड़ी आबादी ने भारत का रुख किया।



1971 में पाकिस्तान सेना का वहां के लोगों पर बढ़ता दमन लोगों के लिए परेशानी का शबब बनता चला गया जिसके बाद उस वक्त की इंद्रिरा सरकार ने बांग्लादेश की मद्द करते हुए पाकिस्तान से उस हिस्से को आजाद करवाया और इसी दौरान लगभग 10 लाख लोगों ने भारत में शरण ली थी। जिसके बाद से असम में बाहरी लोगों का विरोध तेज हो गया था, हालांकि उस वक्त की तत्कालीन प्रधानमंत्री  इंदिरा गांधी ने कहा था कि शरणार्थी चाहे किसी भी धर्म के हों उन्हें वापस जाना होगा. 1971 में एक विदेशी पत्रकार के सवाल कि लाखों अवैध प्रवासियों का आप क्या करेंगीउन्हें कितने दिनों तक रखेंगीके जवाब में इंदिरा गांधी ने कहा, ‘हम तो उन्हें अभी ही नहीं रख सकते हैं, कुछ महीनों में पानी सचमुच सिर के उपर चला गया हैहमें कुछ करना पड़ेगा,एक चीज मैं जरूर कहूंगी मैंने ये तय किया है कि सभी धर्मों के रिफ्यूजियों को हर हाल में जाना होगा, उन्हें हम अपनी आबादी में नहीं मिलाने वाले हैं।’ 


इसके बाद असम के नागरिकों और केंद्र सरकार के बीच 80 के दशक तक संघर्ष चलता रहा है, 80 के दशक में अखिल असम छात्र संघ (आसू) ने एक आंदोलन शुरू किया था. आसू के छह साल के संघर्ष के बाद वर्ष 1985 में राजीव गांधी सरकार के साथ असम समझौते पर हस्‍ताक्षर किए गए थे. इस समझौते के तहत 1951 से 1961 के बीच आये सभी लोगों को पूर्ण नागरिकता और वोट देने का अधिकार देने का फैसला किया गया. तय किया कि जो लोग 1971 के बाद असम में आये थेउन्हें वापस भेज दिया जाएगा. असम समझौते के बाद असम गण परिषद के नेताओं ने राजनीतिक दल का गठन कियाजिसने राज्‍य में दो बार सरकार भी बनाई.


वहीं 2005 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 1951 के नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजनशिप को अपडेट करने का फैसला किया था. उन्होंने तय किया था कि असम में अवैध तरीके से भी दाखिल हो गए लोगों का नाम नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजनशिप में जोड़ा जाएगा लेकिन इसके बाद यह विवाद बहुत बढ़ गया और मामला कोर्ट तक पहुंच गया. 


असम पब्लिक वर्क नाम के एनजीओ सहित कई अन्य संगठनों ने 2013 में इस मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की.2013 से 2017 तक के चार साल के दौरान असम के नागरिकों के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में कुल 40 सुनवाइयां हुईंजिसके बाद नवंबर 2017 में असम सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि 31 दिसंबर 2017 तक वो एनआरसी को अपडेट कर देंगे. हालांकि बाद में इसमें और वक्त की मांग की गई. फिलहाल 2015 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश और निगरानी में यह काम शुरू हुआ और 2018 जुलाई में फाइनल ड्राफ्ट पेश किया गया. 


हालांकि सुप्रीम कोर्ट नेजिन 40 लाख लोगों के नाम लिस्ट में नहीं हैंउन पर किसी तरह की सख्ती बरतने पर फिलहाल के लिए रोक लगाई है. वहीं चुनाव आयोग ने भी स्पष्ट किया है कि एनआरसी से नाम हटने का मतलब यह नहीं है कि मतदाता सूची से भी ये नाम हट जायेंगे. उन्होंने कहा कि जनप्रतिनिधित्व कानून 1950 के तहत मतदाता के पंजीकरण के लिए तीन जरूरी अनिवार्यताओं में आवेदक का भारत का नागरिक होनान्यूनतम आयु 18 साल होना और संबद्ध विधानसभा क्षेत्र का निवासी होना शामिल है. असम के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के दूसरे और अंतिम मसौदे को जारी दिया गया था. एनआरसी में शामिल होने के लिए आवेदन किए 3.29 करोड़ लोगों में से 2.89 करोड़ लोगों के नाम शामिल हैं और इसमें 40 लाख लोगों के नाम नहीं थे।अब शनिवार 31 अगस्त 2019 को फाइनल लिस्ट जारी कर दी गई है जिसमें तीन करोड़ 11 लाख 21 हजार चार लोगों के नाम एनआरसी सूची में शामिल हैं तो वहीं 19 लाख हजार 657 लोगों के नाम सूची में शामिल नहीं हैं। 

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