संकट में है देश की अर्थव्यवस्था,सरकार की हालत है खस्ता
भारत दुनिया की
सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर बढ़ रहा था लेकिन फिलहाल इस पर ब्रेक लग गया है, 8 नवंबर 2016 ये वो पहली तारीख है जब भारत की
अर्थव्यवस्था में पहली बार सुस्ती देखी गई लेकिन सरकार को यह सुस्ती नही दिखी या
कहें की देखना नही चाहती थी क्योंकि यह वही तारीख है जब देश में नोटबंदी लागू की
गई और देश की 86 फीसदी नकदी सरकार ने अपने पास वापस मंगा
ली। 86 फीसदी नकदी 500 और 1000
रुपये के रुप में मंगाना केवल नोट वापस मंगवाना नहीं था बलकी देश
की अर्थव्यवस्था को एक झटके में ठप कर देना था। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
का मानना था कि नोटबंदी से ठप पड़ी अर्थव्यवस्था 50 दिनों
में समान्य हो जाएगी लेकिन शायद उनका आकलंन ठीक नही बैठा और 50 दिन भीत जाने के बाद भी बाजारों में मंदी जारी रही, खैर नोटबंदी से देश आज नही तो कल उभर ही जाता पर शायद सरकार को यह
मंजूर नही था की उन्होंने GST जैसा तोहफा भी व्यापारियों
को 2017 में दे डाला, सरकार के
इन दो बड़े फैसलों ने भारत की अर्थव्यवस्था को तोड़कर रख दिया लेकिन भारत सरकार का
मानना था कि इस फैसले से अर्थव्यवस्था में सुधार आएगा जो अब सरकार के फैसले से ठीक
विपरीत जाता दिख रहा है। भारत की अर्थव्यवस्था की स्थिति यह है कि सरकार को इसे
ठीक करने के लिए आरबीआई के सरप्लस फंड और कंटिंजेंसी फंड का 1.76 लाख करोड़ रुपये की मदद लेनी पड़ी है हालांकि इन फंड पर सरकार का ही हक होता है लेकिन जब इन फंड्स को सरकार इंतनी
बड़ी रकम के रुप में निकालती है तो इसका मतलब साफ है कि सरकार इस बात को मान रही
है कि देश में मंदी का दौर है जिसे वह अबतक इंकार करते आए हैं। यह आरबीआई के 84
सालों के इतिहास में पहली बार होगा जब उसे अपने सरप्लस फंड के
रुप में इतनी बड़ी रकम सरकार को देनी पड़ेगी।
ऑटो सेक्टर में मंदी का दौर है या बात कुछ और है !
क्या होता है सरप्लस फंड
सरप्लस फंड सरल
शब्दों में कहें तो यह वह पैसा होता है जो आरबीआई अपनी कमाई में से सारे खर्चों को
निकालने के बाद बचे हुए पैसे को सरकार को देती है और हमेशा से देती आई है, इसी दिये जाने वाले पैसे को सरप्लस फंड कहा जाता है। सरप्लस को एक तरह
का आरबीआई का प्रोफिट भी कहा जाता है।
क्या होता है कंटिंजेंसी फंड
कंटिंजेंसी फंड का
मतलब होता है इमर्जेंसी के दैरान इस्तेमाल होने वाली धनराशि जिसे आरबीआई अपने
प्रोफिट में से हर साल ऐसी इमर्जेंसी वाली परिस्थितियों के लिए पहले ही निकाल लेती
है उसके बाद सरकार को सरप्लस फंड के रुप में पैसे देती है, उदाहरण कई बार मार्केट में एक बड़े पेमेंट के रुकने से अर्थव्यस्था में
भुगतान के रुकने का एक सिलसिला बन जाता है ऐसी स्थितियों में कंटिंजेंसी फंड का
इस्तेमाल किया जाता है इस फंड को अपने पास रखने के लिए आरबीआई पूरी हकदार भी होती
है।
आरबीआई करेगी सरकार की मदद
देश में इस वक्त
सरप्लस फंड को लेकर बवाल मचा हुआ है क्योंकि आरबीआई केंद्र सरकार को सरप्लस फंड या
कहें लाभांस के रुप में 1.76
लाख करोड़ रुपये देने जा रही है जिसमें से 28000 करोड़ पहले ही सरकार को दिया जा जुका है। इस 1.76 लाख करोड़ में से 1.2 लाख करोड़ आरबीआई सरप्लस
फंड से निकालेगी और 52000 करोड़ कंटिंजेंसी फंड से निकालेगी जिसे सरकार को सरप्लस फंड के नाम से दिया जाएगा यानि अब
आरबीआई का रिजर्व पैसा भी सरकार के लिए निकाला जा रहा है। सरकार का सरप्लस का फंड
इस बार बाकी सालों के मुकाबले डबल है साल 2015-16 में ये
आंकड़ा 65,876 करोड़ था,साल 2016-17
में ये आंकड़ा 30,659 करोड़ था, साल 2017-18 में ये आंकड़ा 40,659 करोड़ था, सरकार ने अभी इस बात का ऐलान नही
किया है कि वह इन पैसों का इस्तेमाल कहां कहां करेगी।
फंड देने का यह फ़ैसला 2018
में पूर्व आरबीआई गवर्नर विमल जालान की अध्यक्षता में बनाई गई एक समिति के सिफ़ारिशों के आधार पर किया गया है.इस समिति में विमल जालान के अलावा पूर्व उप गवर्नर डॉक्टर राकेश मोहन, आरबीआई सेंट्रल बोर्ड डायरेक्टर भरत दोशी,
आरबीआई सेंट्रल बोर्ड डायरेक्टर सुधीर मानकड, सुभाष चंद्र गर्ग और आरबीआई उप गवर्नर एनएस विश्वनाथन शामिल थे.
RBI की स्वायत्ता पर उठ रहे सवाल
आरबीआई की स्वायत्ता पर सवाल पूर्व गवर्नर रघुराम राजन और उर्जित पटेल के जाने के बाद से ही उठने शुरु हो गए थे मिडिया रिपोर्टस के मुताबिक सरकार ने सरप्लस फंड बढ़ाने के लिए पहले भी कहा था तब यह रकम 3 लाख करोड़ के आस-पास थी और इस बात के लिए ना कभी रघुराम राजन और ना ही उर्जित पटेल दोनो ही कभी तैयार नही थे क्योंकि सरप्लस बढ़ाने का मतलब था रिजर्व फंड से भी पैसा निकाला जाए जिसको दोनो ही गर्वनर सही नही मानते थे, कहा जाता है कि उर्जित पटेल पर इसका दवाब ज्यादा था इसी दवाब के चलते उन्होंने समय से पहले ही अपना इस्तीफा सरकार को सौंप दिया हालांकि उर्जित पटेल सरकार से अनबन कि खबरों को सिरे से नकारते आये हैं।आरबीआई के पूर्व उप
गवर्नर विरल आचार्य ने पिछले अक्टूबर में कहा था कि केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता को कमज़ोर करना सेल्फ़ गोल जैसा है.विरल आचार्य आरबीआई
के डिप्टी गवर्नर के रूप में 26 अक्तूबर, 2018 को चर्चा में आए थे जब उन्होंने आरबीआई की स्वायत्तता से समझौता करने
का आरोप लगाते हुए मोदी सरकार को खरी-खोटी सुनाई थी. उनका ये भाषण रिज़र्व बैंक की
बोर्ड बैठक के ठीक तीन दिन बाद आया था. हाल ही में पूर्व
आरबीआई गवर्नर डी सुब्बाराव ने कहा था कि आरबीआई के रिज़र्व पर "धावा बोलना" सरकार के
"दुस्साहस" को दर्शाता है.
70 सालों में वृत्तीय क्षेत्र में ऐसी परिस्थितियां नही देखी:राजीव कुमार नीति आयोग उपाध्यक्ष
विपक्ष का सरकार पर हमला
कांग्रेस ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सरकार पर तीखा हमला बोला है और आरोप लगाया कि देश में आर्थिक इमरजेंसी जैसे हालात बने हुए हैं. मोदी सरकार देश को कंगाली की ओर धकेल रही है. कांग्रेस ने दावा किया कि ये अर्थव्यवस्था में गहरे संकट का प्रतीक है. RBI ने दबाव में यह फैसला लिया है. कांग्रेस ने कहा कैश रिज़र्व देने का फ़ैसला ग़लत है. पार्टी के नेता आनंद शर्मा ने कहा, सरकार घाटे में है, बजट गलत बना दिया है. गरीबों को जो देना था वो दिया नहीं गया है...हालत बहुत बुरी है, इसलिए आरबीआई का पैसा सरकार छीन रही है और देश को इकॉनामिक इमरजैंसी की तरफ ढकेला जा रहा है"
तो वहीं कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट कर सरकार पर हमला बोला है उन्होंने कहा कि खुद के द्वारा पैदा की गई आर्थिक ताबाही का क्या उपाय निकाला जाए,इस बारे में प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री को कुछ नही पता.
आरबीआई से चोरी करके कुछ हासिल नहीं होगा. ये कुछ ऐसा है कि गोली की चोट के लिए डिस्पेंसरी से बैंड एड चोरी करना."
भारतीय
अर्थव्यवस्था में आई कमज़ोरी से सरकार दबाव में है. भारतीय मुद्रा रुपया अमरीकी
डॉलर की तुलना में 72
के पार चला गया है. लगातार चौथे तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर में
गति नहीं आ पाई है. लेकिन सवाल अब भी क़ायम है कि क्या मोदी सरकार आरबीआई से पैसे लेकर
अर्थव्यवस्था में मज़बूती ला पाएगी. सरकार ने टैक्स कलेक्शन का जो लक्ष्य रखा था
उसे पाने में नाकाम रही है और ऐसे मे जब देश को पांच ट्रिलियन वाली अर्थव्यवस्था बनाने की बात कही है तो उसे कैसे पूरा करेंगे मोदी।




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