Bihar Political Crises: क्यों बार-बार पटल जाते हैं नीतीश कुमार, फिर भी बने रहते हैं CM पद के हक़दार, पढ़िए पूरी रिपोर्ट


Bihar Political Crises: बिहार में एक बार फिर से जेडीयू प्रमुख नीतीश कुमार (Nitish Kumar) बीजेपी के साथ अपने गठबंधन को तोड़ चुके हैं. नीतीश वापस से महागठबंधन की ओर चल पड़ हैं. नीतीश कुमार की अगुवाई में सभी विपक्षी पार्टियों ने साथ आकर नई सरकार का गठन करने का फैसला किया है. हर बार कि तरह इस बार भी सीएम नीतीश कुमार ही होंगे.

नीतीश कुमार ने ऐसा पहली बार नहीं किया जब वो किसी का साथ छोड़कर अपनी विरोधी पार्टी के पास चले गए हों, अब राजनीति की समझ रखने वालों के लिए यह आम बात हो चुकी है. लेकिन सवाल अब भी यही बना हुआ है कि इतनी बार धोखा देने के बाद भी नीतीश कुमार हर बाद सीएम पद के हक़दार कैसे हो जाते हैं.

बिहार में 90 के दशक से ही पूर्ण बहुमत की सरकार नहीं बनी है, जब भी बनी गठबंधन की ही सरकार बनी और इन सरकारों में सबसे ज्यादा आठ बार सीएम नीतीश कुमार ही रहे. बिहार की राजनीति को नजदीक से देखने वालों का मानना है की नीतीश बिहार की परिस्थियों को पहले ही भाप लेते हैं इसलिए वह समय रहते पाला बदल लेते हैं. इस बार भी ऐसा ही हुआ, लेकिन इस बार की परिस्थियों में थोड़ा बदलाव है, पहले वोट और सत्ता के लिए गठबंधन तोड़ा था लेकिन इस बार अपनी पार्टी को बचाने के लिए तोड़ा है.

आज बिहार की राजनीति में जो कुछ हो रहा है इसकी पटकथा सरकार बनने से पहले से लिखी जा रही थी. LJP के प्रमुख चिराग पासवान (Chirag Paswan)चुनाव से पहले बीजेपी के साथ थे लेकिन चुनाव के वक्त वह अचानक अलग होकर अकेले ही चुनाव लड़ने चले जाते हैं. साथ ही यह भी कहते हैं कि उनकी पार्टी हर उस सीट से चुनाव लड़ेगी जहां से जेडीयू के उम्मीदवार खड़े हैं और चिराग बीजेपी के खिलाफ अपना कोई भी उम्मीदवार नहीं खड़ा करते हैं.

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चुनाव का परिणाम आया तो जेडीयू को बड़ा झटका लगा बिहार की सबसे बड़ी पार्टी तीसरे नंबर पर पहुंच जाती है. हालाकि सीएम फिर भी नीतीश कुमार ही बनते हैं. लेकिन इस बार वह पहले के मुकाबले मजबूत नही थे क्योंकि बीजेपी चुनाव में जेडीयू से कहीं आगे निकल चुकी थी. ऐसी परिस्थितियों में नीतीश सीएम बनकर भी पावर में नही थे. नीतीश को अंदेशा था कि चिराग पासवान को बीजेपी ने मेरे खिलाफ इस्तेमाल किया है. लेकिन वह इस बात को उस वक्त खुलकर नही कह पाए.

चिराग के बाद नीतीश कुमार को एक और साजिश की बू आने लगी. जेडीयू  के ही नेता रहे नौकरशाही से सियासत में आए रामचंद्र प्रसाद सिंह (RCP Singh). आरसीपी सिंह, जेडीयू में एक वक्त में नीतीश के बाद दूसरे नंबर के नेता माने जाते थे. नीतीश ही आरसीपी सिंह को राजनीति में लाए थे. उन्हे न सिर्फ राजनीति में लाए बलकि आरसीपी सिंह को फर्श से अर्श तक भी पहुंचाया. नीतीश ने दो-दो बार आरसीपी सिंह को राज्यसभा भेजा, राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष भी बनाया, पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष तक बनाया. आरसीपी सिंह नीतीश की तरह कुर्मी जाती से आते हैं लेकिन वो कभी जन-नेता नहीं बन पाए.

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आरसीपी सिंह भले ही जन-नेता न बन पाए हो लेकिन पार्टी में उनका ठीक-ठाक रुतबा था. जेडीयू में वह इतने बड़े नेता थे कि टिकट के बटवारे में शामिल रहते थे. लेकिन धीरे-धीरे आरसीपी सिंह बीजेपी के करीब आते चले गए और प्रधानमंत्री मोदी के कसीदे पढ़ने लगे. जिस योजना पर नीतीश बीजेपी से अलग राय रखते थे आरसीपी सिंह जेडीयू के होकर भी बीजेपी सरकार द्वारा लाई योजनाओं के समर्थन में बोलते थे. यहीं पर नीतीश को समझ आने लगा था कि बीजेपी आरसीपी सिंह के बहाने उनको कमजोर करने कि कोशिश कर रही है.

इन सब परिस्थियों के बीच महाराष्ट्र में जो उटल फेर हुआ उसने नीतीश को साफ तौर पर चेतावनी दे दी थी की अगर समय रहते उन्होने कुछ नही किया तो उनका भी हाल कहीं शिवसेना जैसा न हो जाए. कहीं आरसीपी सिंह एकनाथ सिंदे की तरह पार्टी न तोड़ दें. ऐसे में पिछले माह के अंत में बीजेपी नेताओं की पटना में हुई बैठक में अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा कि बीजेपी अगर इसी तरह काम करती रही तो क्षेत्रीय दल समाप्त हो जाएंगे.

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जेपी नड्डा (J.P. Nadda) का ये बयान सिर्फ एक बयान मात्र नही हैं, बीजेपी ने जिस भी क्षेत्रीय पार्टी के साथ गठबंधन किया और सरकार चलाई आज उन सभी पार्टी की स्थिति काफी खराब हो चुकी है उदाहरण के तौर पर आप शिवसेना, अकाली दल, तमिलनाडु की एआईएडीएमके, टीडीपी, एलजेपी, पीडीपी-नेशनल कांफ्रेस और अब जेडीयू का गिरता ग्राफ. ये सब चीज़े जेडीयू के लिए एक सबक है कि उन्हे आगे क्या करना चाहिए.

नीतीश को भी राजनीति का लंबा अनुभव है वो वह अगर बिना किसी कारण आरसीपी पर कार्रवाई करते तो उनपर ही सवाल खड़ा हो जाता. नीतीश के मना करने के बाद भी आरसीपी बीजेपी के पास केंद्र में मंत्री बनने के लिए पहुंच गए थे. इस बात को भी नीतीश बखूबी जानते थे कि आरसीपी सिंह कभी-भी बगावत कर सकते हैं, इसलिए नीतीश ने पहले आरसीपी सिंह पर भष्टाचार के आरोप लगाए और फिर उन्हे पार्टी से भी निकाल दिया. नीतीश ने न सिर्फ आरसीपी सिंह को पार्टी से निकाला बलकि उनके करीबी चार नेताओं को भी प्राथमिक सदस्यता से निलंबित कर दिया था. जेडीयू के महासचिव रहे अनिल कुमार, विपिन कुमार यादव, अजय आलोक और पार्टी की समाज सुधार इकाई के अध्यक्ष जितेंद्र नीरज को पार्टी से बाहर जाना पड़ा.

ऐसा नहीं है कि नीतीश कुमार ने गठबंधन से अलग होने का फैसला अचानक ले लिया है. पिछले पांच महीनों में बिहार की राजनीति में आपने देखा होगा की नीतीश और तेजस्वी कई बार एक साथ देखे गए हैं. रमजान में इफ्तार पार्टी में दोनो ही नेता एक दूसरे के मंचों से साथ देखे गए थे. उसके बाद जातिगत जनगण को लेकर भी नीतीश के नेतृत्व में बिहार की सभी पार्टीयां साथ एक मंच पर आई थी. लालू की तबीयत बिगड़ी तो नीतीश उन्हे देखने भी पहुंचे. ऐसे कई मैके थे जब नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव साथ देखे गए.

अब एक बार फिर नीतीश कुमार मुख्यमंत्री और तेजस्वी यादव (Tejasvi Yadav) उपमुख्यमंत्री बनने जा रहें हैं. इन सब घटनाक्रम के बीच एक बात और निकलकर सामने आई की सरकार बनाने के लिए जेडीयू और आरजेडी की सीटें काफी थीं फिर भी नीतीश कुमार ने इस्तीफा देने से पहले सोनिया गांधी को फोन क्यों किया.

सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) और नीतीश कुमार के बीच क्या बात हुई ये किसी को नहीं पता लेकिन कहते हैं बात कई बार हुई. दोनो ही पार्टियों ने बातचीत से इंकार नही किया है. राजनीति की समझ रखने वाले लोग मानते हैं कि नीतीश कुमार का सभी राजनीतिक पार्टियों को साथ लाना और खासतौर पर कांग्रेस अध्यक्ष से बात करना इस बात को बताता है कि नीतीश कुमार 2024 के चुनाव को भी साध रहे हैं. ऐसा हो सकता है कि वह 2024 के चुनाव में खुद को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाना चाहते हों और यह तभी संभव है जब कांग्रेस उन्हे समर्थन करे.

एक तरफ जहां सभी बीजेपी को ओर जा रहें हैं वहां नीतीश (Nitish Kumar) बीजेपी को छोड़ वापस आ रहें हैं, ऐसे में यह माना जा रहा है कि नीतीश का यह कदम 2024 के लिए विपक्षी पार्टी पर बहुत सकारात्मक मनोवैज्ञानिक छाप छोड़ेगा. नीतीश की शायद यही दूरदर्शी सोच है कि वह इतने लंबे समय से बिहार के सीएम बने हुए हैं.  


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