SriLanka Crisis: राष्ट्रपति भवन में आराम करती जनता, नंगे पांव भागते राष्ट्रपति


SriLanka Crisis:आम आदमी के साथ कब तक सियासत होगी. जब भूख हद से बढ़ेगी तो बगावत होगी. जब आम जनता को अनाज, पेट्रोल, डीज़ल, बिजली जैसी अभूतपूर्व सुविधाओं के लिए नागरिकों को श्रीलंका में मशक्कत करनी पड़ रही है. श्रीलंका में लोगों के सब्र का बांध अब टूटता जा रहा है. जिसका खामियाज़ा सत्ता के सिंघासन पर बैठे नेताओं को अब उठाना पड़ रहा है. 

बढ़ती बेरोज़गारी, बेलगाम महंगाई से नाराज़ देश के अलग-अलग हिस्सों से कोलंबो पहुंचे छात्रों ने श्रीलंका के सबसे ताकतवार शख्स को अपने राजमहल से नंगे पांव भागने पर मजबूर कर दिया. श्रीलंका (SriLanka) में अब संपूर्ण क्रांति के हालात पैदा हो गए हैं. राष्ट्रपति भवन पर कब्ज़ा करने से पहले लाखों की तादाद में युवा 3 शब्दों का नारा दे रहे थे. गोटा गो गामा. जिसका मतलब है राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे (gotabaya rajapaksa) अपने गांव भागो लेकिन इस नारे को राजपक्षे ने हल्के में लिया सोचा कि सेना और पुलिस के दम पर वो प्रदर्शनकारियों को रोक देंगे. लेकिन उनका यह भ्रम बहुत जल्दी चकना-चूर हो गया और उन्हे खुद राष्ट्रपति भवन छोड़कर नंगे पांव भागना पड़ा.

श्रीलंका के राष्ट्रपति भवन पर 9 जुलाई को प्रदर्शनकारियों ने डेरा जमा लिया था, जिसे अब वो छोड़ने को तैयार नहीं हैं. उनका कहना है कि जब तक गोटबाया राजपक्षे राष्ट्रपति के पद से इस्तीफा नहीं देते, तब तक राष्ट्रपति भवन उनके कब्ज़े में रहेगा. गोटाबाया राजपक्षे ने 13 जुलाई को इस्तीफा देने की बात कही है, लेकिन प्रदर्शनकारियों को भरोसा नहीं है कि वो इस्तीफा देंगे. इसलिए लोगों ने 13-14 जुलाई तक राष्ट्रपति भवन में ही रहने की योजना बनाई है.

कैसे हुई आंदोलन की शुरुआत

यह श्रीलंका के नागरिकों का संपूर्ण क्रांति आंदोलन है जिसकी शुरुआत कुछ छात्रों ने मिलकर की थी. लेकिन इन्ही कुछ छात्रों को जब राजपक्षे जेल में डालने लगे तो इस आंदोलन को देश भर के कई छात्रों, औरतों, कारोबारियों का समर्थन मिलने लगा. श्रीलंका में जनता के मुश्किल दिन काफी पहले ही शुरू हो गए थे, लेकिन अब उनका गुस्सा चरम पर पहुंच गया है. लोग बीते कई महीनों से खाने-पीने की जरूरी चीजों से लेकर पेट्रोल-डीजल तक की किल्लत झेल रहे हैं. हालात इस कदर बिगड़ गए थे कि सरकार को देश में आर्थिक आपातकाल लगाना पड़ा,  साथ ही सभी जरूरी सामान को जनता के बीच बांटने के लिए आर्मी लगाने की नौबत आ गई.

चार गुना मंहगा हुआ खाने-पीने का सामान

श्रीलंका के पास ना तो कर्मचारियों को वेतन देने का पैसा है. ना बिजली सप्लाई के लिए कोयला है और ना ही फूड सप्लाई चेन को जारी रखने के लिए कोई संसाधन है. नतीजा ये हुआ कि महंगाई ने आम जनता की कमर तोड़ दी. श्रीलंका में दूध की कीमत 2000 रुपए प्रति लीटर पर पहुंच गई है. चावल 500 रुपए किलो के हिसाब से बिक रहा है. चीनी 300 रुपए किलो तो वहीं एक पैकेट नमक की कीमत 400 रुपए में मिल रहा है.

क्या ऑर्गेनिक खेती भी एक कारण है श्रीलंका में मंहगाई की 

कुल मिलाकर श्रीलंका में अब लोगों का जीना मुहाल हो रहा है. श्रीलंका में छाए संकट के बादलों की तात्कालिक वजह सरकार का वो फैसला है, जिसमें सरकार ने देश को ऑर्गेनिक खेती का हब बनाने के लिए केमिकल फर्टिलाइज़र्स को एक झटके में पूरी तरह से बैन कर दिया. अचानक हुए इस बदलाव ने श्रीलंका के एग्रीकल्चर सेक्टर को तबाह कर दिया.

श्रीलंका के ऊपर विदेशों का कितना है कर्ज

श्रीलंका के ऊपर अकेले चीन का ही 5 बिलियन डॉलर से ज्यादा कर्ज है. वहीं भारत और जापान (Japan) जैसे देशों के अलावा आईएमएफ (IMF) जैसे संस्थानों का भी लोन है. विदेशी मुद्रा भंडार के मोर्चे पर भी श्रीलंका को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. महज़ तीन साल पहले श्रीलंका के पास 7.5 बिलियन डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार था. उसी समय वहां नई सरकार का गठन हुआ था. बाद में इसमें तेजी से गिरावट आई और जुलाई 2021 में यह महज 2.8 बिलियन डॉलर रह गया. पिछले साल नवंबर तक यह और गिरकर 1.58 बिलियन डॉलर के स्तर पर आ गया.

श्रीलंका के पास विदेशी कर्ज की किस्तें चुकाने लायक भी फॉरेक्स रिजर्व (Foreign Reserves) नहीं बचा है. हालात यहां तक खराब हुए कि सरकार को हाल में लोगों के विदेशी मुद्रा अपने पास रखने की लिमिट तय करनी पड़ी. विदेशी मुद्रा भंडार कम होने से श्रीलंकाई (SriLanka) रुपये की वैल्यू भी कम होती गई. इससे महंगाई की समस्या ने विकराल रूप ले लिया. कुल मिलाकर देश के हालात बद से बदतर हो गए हैं और इन बदतर हालातों से जूझ रहे लोगों ने अब अपनी आवाज़ उठानी शुरु कर दी है.


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