Bilkis Bano Case: बिलकिस बानो या बलात्कारियों, किसके लिए था आजादी का अमृत महोत्सव ?
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| Source: Social Media |
Bilkis Bano Case: गोधरा कांड के बाद भड़के गुजरात 2002 दंगों में बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया और उनके परिवार के सात लोगों की हत्या कर दी गई. जिस वक्त बिलकिस बानो का रेप किया गया उस वक्त बिलकिस पांच महीने की गर्भवती थीं. जब देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा था उसी वक्त बिलकिस बानो केस में 11 दोषियों या कहें हत्यारे और बलात्कारियों को रिहा किया जा रहा था. सिर्फ बलात्कारियों को रिहा नही किया गया बलकि उनका फूल-मालाओं से स्वागत भी किया गया.
एक तरफ जहां भारत के
प्रधानमंत्री लाल किले की प्राचीर से देश को संबोधित करते हुए कह रहे थे कि “हमारे आचरण में विकृति आ गई है और हम कभी-कभी महिलाओं का अपमान करते हैं.
उन्होंने देश से सवाल किया कि क्या हम अपने व्यवहार में इससे छुटकारा पाने का
संकल्प ले सकते हैं. पीएम ने कहा कि हमारे बोलचाल में, हमारे
व्यवहार में, हमारे
कुछ शब्दों में.. हम नारी का अपमान करते हैं... क्या हम स्वभाव से, संस्कार से, रोजमर्रा की
जिंदगी में नारी को अपमानित करने वाली हर बात से मुक्ति का संकल्प ले सकते हैं..
मोदी यह बोलते हुए कुछ भावुक दिखे.. इन लाइनों को बोलते-बोलते वह कुछ देर के लिए
रुक भी गए”
प्रधानमंत्री
ने जब ये बयान दिया तो क्या उन्हें इस केस की कानूनी प्रक्रिया के बारे में पता
होगा कि नहीं, वैसे पता ही होगा क्योंकि गुजरात में दंगे और बिलकिस बानो का रेप
उनके गुजरात मुख्यमंत्री रहते ही हुआ था. उन्हें गुजरात दंगों में एक लंबे अरसे तक
केस की प्रक्रिया से गुजरना पड़ा था. देश के नागरिकों के आचरण में
विकृति आ गई है यह कहते हुए क्या प्रधानमंत्री को उन्नाव, सहारनपुर और हालहि में
हुए नोएडा में महिला के साथ अभद्रता करने वाले बीजेपी नेताओं के आचरण में कोई
विकृति नहीं दिखाई दी. आगे प्रधानमंत्री ने कहा हम बोलचाल में नारी का अपमान करते
हैं, क्या पीएम को यह बात उस वक्त याद नहीं आई थी जब उन्होंने एक महिला को 50
करोड़ की गर्लफ्रेंड कहा था.
प्रधानमंत्री ने नारी को अपमानित
करने वाली हर बात से मुक्ति का संकल्प लेने को कहा है, क्या प्रधानमंत्री मोदी ने
बीजेपी के नेताओं को ये संकल्प दिला दिया है. क्योंकि एक तरफ जब आप देश को यह
संकल्प दिला रहे थे तो दूसरी तरफ आपकी बीजेपी सरकार गुजरात में बलात्कारियों को
रिहा कर रही थी और नोएडा में बीजेपी सांसद महेश शर्मा उन गुंडों को छुड़ाने के लिए
मशक्कत कर रहे थे जिन्होंने महिला के घर जाकर उसे धमकाने कि कोशिश कि थी और वह सफल
भी हो गए. देश के नागरिकों के आचरण पर सवाल उठाने से पहले पीएम ने क्यों अपनी ही
पार्टी के नेताओं के आचरण, व्यवहार और बोलचाल का आकंलन नही किया. उन्हे ऐसा कहने
से पहले अपने और अपनी पार्टी के अंदर एक बार झांक कर जरूर देखना चाहिए था, कहीं वह विकृति
व्यवहार वाला मनुष्य उनके अंदर तो नहीं बैठा है. यदि उन्होंने ने ऐसा कर लिया होता
तो शायद उन्हें लाल किले की प्रचीर से इतने भारी मन से ये सब नहीं बोलना पढ़ता.
प्रधानमंत्री
मोदी और उनकी पार्टी का महिलाओं के प्रति यह आचरण क्या उन्हे और बिलकिस बानों को
सच में आजादी की अनुभूति करवाता है, क्या सच में 15 अगस्त का यह दिन बिलकिस बानो के
लिए आजादी का दिन होगा ? जिस दिन देश अपनी
आजादी पर गर्व महसूस कर रहा है उस दिन बिलकिस भारत के लिए क्या महसूस कर रहीं
होगीं.
क्या हुआ था बिलकिस बानो के साथ
2002 में गुजरात में दंगे भड़कने के बाद बिलकिस बानो अहमदाबाद के अपने गांव रनधिकपुर से भाग कर छप्परवाड़ गांव में एक खेत में जाकर छुप गई थीं. उनके साथ उनकी 3 साल की बच्ची, मां और परिवार के कुछ सदस्य भी थे. इस मामले में जो चार्ज शीट दायर की गई उसमें बताया गया कि बिलकिस और उनके परिवार पर लगभग 20 से 30 लोगों ने हमला किया था. हमला करने वालों ने पहले बिलकिस उनकी मां और कुछ अन्य महिलाओं के साथ रेप किया फिर उनमें से कई लोगों को जान से मार दिया. मरने वालों की संख्य चार्ज सीट में सात बताई गई है.
रेप और मारपीट की वजह से बिलकिस
बेहोस हो गई थी. बिलकिस लगभग चार घंटे बाद होश में आईं थीं. जिसके बाद उन्होंने देखा
कि कई लोग परिवार के मारे जा चुके हैं और उनके बदन पर कपड़े भी नही हैं. जिसके बाद
वह आदिवासियों से कुछ कपड़े लेकर अपने बदन को ढकतीं हैं. इसके बाद वह एक होमगार्ड
से मिलीं जो उन्हें शिकायत दर्ज कराने के लिए लिमखेड़ा थाने ले गया. वहां
कांस्टेबल सोमाभाई गोरी ने उनकी शिकायत दर्ज की.
यहां से बिलकिस को सीधा रिलीफ़
कैंप भेजा गया, वहां से मेडिकल जांच के लिए अस्पताल ले जाया गया. यहां से बिलकिस
बानों कि कानूनी लड़ाई शुरु होती है. कई दिनों तक बिलकिस का केस गुजरात में ही चला,
इसी दौरान उन्हे मारने की धमकियां भी मिलती रहीं. केस में सबूत न मिलने के कारण पुलिस
ने केस को बंद कर दिया.
बिलकिस ने इतने से हार नहीं मानी
और मानवाधिकार आयोग पहंची और वहां से सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई. कोर्ट ने क्लोज़र
रिपोर्ट को ख़ारिज करते हुए केस को सीबीआई को देकर दोबारा ओपन कर दिया. सीबीआई ने जांच कर अपनी चार्जशीट में 18 लोगों को दोषी पाया था. इनमें पांच पुलिसकर्मी समेत दो डॉक्टर भी
शामिल थे जिन पर अभियुक्त की मदद करने के लिए सबूतों से छेड़छाड़ का आरोप था.
जैसे-जैसे मामला आगे बढ़ता गया
बिलकिस की परेशानियां भी बढ़ती गईं उनको लगातार धमकियां मिल रही थी जिसके कारण
उन्हे 20 बार घर तक बदलना पड़ा. इसी डर से बिलकिस ने कोर्ट से दरखास्त की उनका केस
किसी और राज्य में ट्रास्फर कर दिया जाए जो बाद में मुबई में किया गया.
सीबीआई की विशेष अदालत ने जनवरी
2008 में 11 लोगों को दोषी क़रार दिया. इन लोगों पर गर्भवती महिला के रेप, हत्या और
गैरक़ानूनी तौर पर एक जगह इकट्ठा होने का आरोप लगाया गया था. सात लोगों को सबूत के
अभाव में छोड़ दिया गया. जबकि एक अभियुक्त की मुक़दमे की सुनवाई के दौरान मौत हो
गई.
क्या कहता है रिहाई कानून 1992 और 2014
इस
मामले में गुजरात सरकार ने 1992 की नीति को आधार बनाकर दोषियों को रिहाई दी है. इस
नियम को लेकर मुख्य सचिव (गृह) राज कुमार का कहना है कि जब किसी को उम्र कैद की
सजा होती है तो दोषी 14 साल जेल में रहने के बाद अपनी सजा माफी को लेकर दरखास्त कर
सकता. जबकि 2014 की नीति में जो वर्गीकरण किया गया था उसके अनुसार बलात्कारियों और
हत्या करने वाले दोषियों को माफ़ी नहीं मिल सकती है. इस केस में नियम को लेकर
मामला जब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो कोर्ट ने जिस दिन कन्विक्शन हुआ था और ये लोग
दोषी पाए गए थे, उस दिन जो नीति अमल में थी उसके
अधीन आप निर्णय लें. ऐसा राज्य सरकार को कहा था. राज्य सरकार ने 1992 के नियम को
आधार मानते हुए यह निर्णय किया है. 1992 की
नीति में किसी भी प्रकार का वर्गीकरण नही है. इसलिए राज्य सरकार ने विचार किया. अब
सवाल कोर्ट और राज्य सरकार दोनो पर उठ रहे हैं कि इस मामले में 2014 के नियम को
क्यों नहीं लागू किया गया. यदि 2014 का नियम लागू होता तो यह दोषी आज बाहर न होते.
केंद्रीय
गृह मंत्रालय ने 10 जून को सभी राज्यों को पत्र लिखकर बताया था कि भारत की आज़ादी
की 76वीं सालगिरह पर मनाये जा रहे आज़ादी के अमृत महोत्सव के दौरान कुछ श्रेणियों
के बंदियों की सज़ा माफ़ कर उन्हें तीन चरणों में रिहा करने का प्रस्ताव है: पहला
चरण 15 अगस्त 2022 होगा, दूसरा चरण 26 जनवरी 2023 और तीसरा
चरण 15 अगस्त 2023 होगा. साथ ही ये भी बताया था कि किन श्रेणियों के क़ैदियों की
सज़ा माफ़ नहीं की जा सकती है. इसमें बलात्कार के दोषी और उम्रकै़द की सज़ा भुगत
रहे क़ैदी शामिल थे.
इन
दोषियों से भी कम जघन्य अपराध करने वाले दोषी ज्यादा बुरी स्तिथि में कई कैदी आज
भी जेल में बंद हैं जब उनपर कोई फैसला नही लिया गया तो इनपर क्यों? ऐसे कई सवाल है जिनको लेकर राजनीतिक पार्टियां और
मानवाधिकार से जुड़े समाजिक कार्यकर्ता पूछ रहे हैं.
हम आपको
कुछ सवालों के साथ छोड़े जा रहे हैं कि, आखिरकार गुजरात दंगों से जुड़े सभी मामले
इतनी जल्दी-जल्दी क्यों निपटाए जा रहें हैं. पहले प्रधानमंत्री को क्लीन चिट मिली,
फिर गृहमंत्री अमित शाह और अब बलात्कारियों को रिहाई दी जा रही है. यदि सब निर्दोश
थे तो दंगे का दोषी कौन है ?
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